पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/१७८

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चाँदी की डिबिया
[ अड़्क ३
 

दारोग़ा

[ एक ही आवाज़ में, हर एक अवाज़ के अन्त में रुकता हुआ ताकि उसका बयान लिखा जा सके। ]

आज सबेरे क़रीब दस बजे मैंने इन दोनों लड़कियों को ब्ल्यूस्ष्ट्रीट में एक सराय के बाहर रोते हुए पाया। जब मैंने पूछा कि तुम्हारा घर कहां है तो उन्होंने कहा कि हमारा घर नहीं है। माँ कहीं चली गई है। बाप के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उसके पास कोई काम नहीं है। जब पूछा कि तुम लोग रात कहां साईं थीं, तो उन्होंने अपनी फूफू का नाम लिया। हज़ूर, मैंने तहक़ीक़ात की है। औरत घर से निकल गई है और मारी मारी फिरती है। बाप बेकार है और मामूली सराय में रहता है। उसकी बहन के अपने ही आठ लड़के हैं वह कहती है कि मैं इन लड़कियों का अब पालन नहीं कर सकती।

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