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चाँदी की डिबिया
[ अड़्क ३
दारोग़ा
[ सन्नाटा हो जाता है ]
अगर हज़ूर का ख़याल हो कि ये बच्चे अनाथ हैं तो हम उनको लेने को तैयार हैं।
मैजिस्ट्रेट
हां, हां, मैं जानता हूँ! लेकिन मेरे पास कोई ऐसी शहादत नहीं है कि यह आदमी अपने बच्चों की ठीक तौर से देख रेख नहीं कर सकता।
[ वह उठता है और आग के आग चला जाता है। ]
दारोग़ा
हज़ूर, इनकी माँ इनके पास आती जाती है।
मैजिस्ट्रेट
हां, हां! माँ इस योग्य नहीं है कि बच्चे उसे दिए जायँ।
[ बाप से ]
तुम क्या कहते हो?
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