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पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/४०

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चाँदी की डिबिया
[ अङ्क १
 

खेद है मुझे देर हो गई

[ प्यालों को अरुचि से देखकर ]

अम्मा, मुझे तो चाय दीजिए। मेरे नाम का कोई ख़त है?

[ बार्थिविक उसे ख़त दे देता है ]

यह क्या बात है, इसे खोल किसने डाला? मैं आप से कह चुका मेरे ख़तो

बार्थिविक

[ लिफ़ाफ़े को छूकर ]

मेरा ख़याल है कि यह मेरा ही नाम है।

जैक

[ खिन्न होकर ]

आप ही का नाम तो मेरा भी नाम है। इसे मैं क्या करूँ।

[‌ ख़त पढ़ता है और बड़बड़ाता है ]

बदमाश!

३२