पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२०६

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काव्य में अभिव्यञ्जनावाद । १६६ रूपों के सहारे ही अभिव्यक्षित होकर व्यक्त हो सकती हैं। इसी मजहबी रहस्यवाद का संस्कार क्रोचे के निरूपण में छिपा है जिसके कारण वह कल्पना को ‘ज्ञान' कहता है। ‘ज्ञान' शब्द में एक विशेष गुरुत्व या महत्त्व है । अतः जो अन्तर्दशा जिसे बहुत प्रिय होगी उसे यह महत्त्व देना उसके लिए स्वाभाविक ही है । यदि ऐसी अन्तर्दशा लोगो की दृष्टि में बे-ठौर-ठिकाने की हुई तो उसे वह उच्च भूमि का ज्ञान, आध्यात्मिक या पारमार्थिक ज्ञान, कह देगा । * | फ्रांस के दार्शनिक बर्गसन ( Bergson ) पर भी उपर्युक्त संस्कार का प्रभाव पूरा पूरा है। कल्पना-रूपी स्वयंप्रकाश ज्ञान (Intuition) को वह भी ‘आत्मा की अपनी सृष्टि’ और ‘पारमार्थिक ज्ञान' कहता है और बुद्धि की विवेचना द्वारा उपलब्ध ज्ञान या प्रमा को व्यावहारिक ज्ञान । कल्पना को आध्यात्मिक आभास घोषित करने का प्रभाव योरप के काव्य-रचना-क्षेत्र में भी बहुतों पर पड़ा है, और बुरा पड़ा है । जब कि कल्पना में आई हुई बात अध्यात्म-जगत् की होती है। तव कम से कम उसको रूप-रंग तो इस जगत् से कुछ विलक्षण होना चाहिए । इस धारणा की हद पर पहुँचा हुआ दूसरे जगत् के पंछियो को एक दल अंगरेजी के काव्य-क्षेत्र से गुजर चुका है ।। रहा दार्शनिकता का यह मजबी पुट' कि मूर्त भावना या कल्पना आत्मा की अपनी क्रिया है। यह तो केवल आवश्यकता पड़ने पर ।

  • Any state of mind in which any one takes a great interest is very likely to be called "Knowledge' If this state of mind is very unlike those usually so called, the new 'Knowledge will be set in the opposition to be old and praised as as of superior, more real and more essential nature--Meaning of Meaning (CK Ogden and I A. Richards )

I Their theory was that they were to sing, as far as possable, like birds of another world --Poetry and Renasence of Wonder (TW. Dunton).