पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

काव्य में अभिव्यञ्जनावाद । २११ करना है । वह जब होगी तव विचारात्मक होगी। कल्पनात्मक या भावात्मक कृति की परीक्षा विचार या विवेचन द्वारा ही हो सकती है, उसके जोड़ मे दूसरी कल्पना भिड़ाने से नहीं । भाषा के दो प्रकार के प्रयोग होते हैं—साङ्केतिक ( Syinabolic ) या तथ्य-बोधक तथा भावप्रवर्तक ( Eimotive ) 1* समीक्षा प्रथम प्रकार के प्रयोग से ही हो सकती है, दूसरे प्रकार के प्रयोग से नहीं है। | कलावाद के प्रचारक मि० स्पिगर्न का उल्लेख ऊपर हो चुका है। उन्होने विचारात्मक आलोचन और भावात्मक समीक्षा में-जिसे उन्होंने प्रभावात्मक समीक्षा ( Inipressionist Ci1(1Cism ) कहा है-पुरुग्न और स्त्री को भेद बताया है। प्रथम को उन्होने ‘मरदानी समीक्षा' कही है, द्वितीय को ‘जनानी समीक्षा खैर, यही सही । तब भी मैं अपने साहित्य के वर्तमान सहयोगियों से इतना निवेदन करूंगा कि “भाइयो कुछ ‘मरदानी समीक्षा भी होनी चाहिए । केवल इसी प्रकार की समीक्षा से कि एक बार इस कविता के प्रवाह में पड़कर वहना ही पड़ता है। स्वयं कवि को भी विवशता के साथ बहना पड़ा है, वह एकाधिक बार मयूर की भॉति अपने सौन्दर्यं पर आप ही नाच उठा है, काम नहीं चल सकता ।। | ‘कलावाद’ और ‘अभिव्यञ्जनवाद' का इतना विस्तृत उल्लेख मैंने इस कारण किया कि इनका प्रभाव योरप में समीक्षा के स्वरूप पर तो वहुत अधिक और काव्य-रचना के स्वरूप पर भी थोड़ी बहुत

  • The Meaning of Meaning ( Clhap VII)-C K Ogden and I A Ricliards

There are two seves of Criticism-the Masculine Criticism, that never, at all events, is dominated by the object of its studies, and the Feminine Criticism, that responds to the lure of art with a kind of passive ecstacy The New Criticism,