पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२४६

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काव्य मे अभिव्यञ्जनवाद २४१ इस बात को स्पष्ट शब्दों में निर्देश न होने से बहुत से कवियो ने केवल सादृश्य को-रूप-रंग की समानता को-पकड़कर सुन्दर वस्तुओं के कुछ भद्दे उपमान खड़े कर दिए हैं। जैसे, केवल पतलापन लेकर कटि की उपमा भिड़ की कमर या सिहिनी की कमर से दे दी ; यह न सोचा कि भिड़ की कमर का चित्र कल्पना में आने से किसी प्रकार की सौन्दर्य, भावना मन मे न आएगी और सिंहिनी के सामने आ जाने पर तो जो कुछ सौन्दर्य-भावना पहले से जगी भी होगी वह भी भाग खड़ी होगी । तात्पर्य यह कि काव्य में जो अप्रस्तुत वस्तुएँ ( उपमान) लाई जाती है वे यह देखकर कि उनके द्वारा प्रस्तुत के सम्बन्ध में सौन्दर्य-माधुर्य आदि की भावना में कुछ वृद्धि होगी । अतः प्रभाव-साम्य पहले देख लेना चाहिए। | बड़े हर्ष की बात है कि हिन्दी की वर्तमान नए ढंग की कविताओं में विशेषतः प्रभाव-साम्य पर ही दृष्टि रखी जाती है। सादृश्य अत्यन्त अल्प या न रहने पर भी केवल प्रभाव-साम्य का हलका सा सङ्केत लेकर ही अप्रस्तुत की बेधड़क योजना कर दी जाती है। कुछ उदाहरण लीजिए---- पल्लव' से११) इन्द्रधनु-सा आशा का सेतु ; अनिल में अटका कभी अछोर । ( साम्यके आधार-विविधता, आधार की सूक्ष्मता ) (२) नवोदा-बाल-लहर । | ( साम्य का आधार-लज्जा से खिसकना या सुकड़ना ) ( ३) सिसकते हैं समुद्र से मन ।। | ( साम्य का आधार सिसकने का शब्द नहीं, सिसकने में छाती को नीचे ऊपर होनी मात्र ) ‘ऑसू' से (१) उत्तको सुख नाच रहा था, दुख-दुमदल के हिलने से । ६६