पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२७

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चिन्तामणि

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चिन्तामणि इस वर्णन में यह स्पष्ट लक्षित होता है कि कवि को दृश्य की एक-एक सूक्ष्म वस्तु और व्यापार प्रत्यक्ष करके चित्र पूरा करने की उतनी चिन्ता नहीं है जितनी कि अद्भुत-अद्भुत उपमाओं आदि के द्वारा एक कौतुक खड़ा करने की । पर काव्य कौतुक नहीं है, उसका उद्देश्य गम्भीर है। पाश्चात्य काव्य-समीक्षक किसी वर्णन के ज्ञातृ-पक्ष ( Subjec11ve ) और शेय-पक्ष ( Objective ) अथवा विपयि-पक्ष और विषय-पक्ष-दो पक्ष लिया करते है । जो वस्तुएँ वाह्य प्रकृति में हम देख रहे हैं उनका चित्रण डेय-पक्ष के अन्तर्गत हुआ, और उन वस्तुओ के प्रभाव से हमारे चित्त में जो भाव या आभास उत्पन्न हो रहे हैं वे ज्ञातृ-पक्ष के अन्तर्गत हुए। अतः उपमा, उत्प्रेक्षा आदि के आधिक्य के पक्षपाती कह सकते है कि पिछले कवियो के दृश्य-वर्णन ज्ञातृ-पक्ष-प्रधान है। ठीक है; पर वस्तु-विन्यास प्रधान कार्य है। यदि वह अच्छी तरह बन पड़ा तो पाठक के हृदय में दृश्य के सौन्दर्य, भीषणता, विशालता इत्यादि का अनुभव थोड़ा-बहुत आप से आप होगा । वस्तुओं के सम्बन्ध में इन भावो का ठीक-ठीक अनुभव करने मे सहारा देने के लिए कवि कही बीच-बीच में अपने अन्तःकरण की । भी झलक दिखाता चले तो यहाँ तक ठीक है। यह झलक दो प्रकार की हो सकती है--भावमय और अपर-वस्तुमय । जैसे, किसी ने कहा--तालाब के उस किनारे पर खिले कमल कैसे मनोहर लगते हैं । । यहाँ कमलों के दर्शन से सौन्दर्य का जो भाव चित्त में खींचते समय स्त्रियाँ कुछ कोलाहल करती हैं उसी प्रकार के पक्षियों के कोलाहल से पूर्ण दिशारूप खियाँ, दूर तक फैली हुई किरणरूपी रस्सियों से, सूर्यरूपी घड़े को बांधकर बड़े भारी कलश के समान समुद्र के भीतर से खींचकर ऊपर निकाल रही हैं। सूर्य के उदय होने से पहले ही सूर्य के साथी अरुण ने सारा अन्धकार दूर कर दिया ; वैरियों को नष्ट करनेवाले स्वामियों के आगे चलनेवाला सेवक भी शत्रुओं को मार भगाने में समर्थ होता है।