पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/३८

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काव्य में प्राकृतिक दृश्य २५ इंद्रधनुष मानों पीतवसन-छवि, दामिनि दसन विचारि; जनु बगपति माल मौतिन की, चितवत हितहि निहारि। अथवा तुम्हारो गोकुल हो, व्रजनाथ । घेख्यो है अरि चतुरंगिनि लै मनमथ-सेना साथ। गरजत अति गंभीर गिरा, मनु मैगल मृत्त अपार ; धुरवा धूरि उदृत रथ पायक घोरन की खुरतार । केवल कहीं-कहीं नियत वस्तुओं की कुछ अधिक गिनती-भर मिलती है , जैसे वरन-वरेन अनेक जलधर अति मनोहर बेष , तिहि समय, सखि । लगन-सभा सवहि ते सुबिसेष । उद्धृत खग, बग बूंद राजत, रटत चातक, मोर ; वहुल विधि विधि रुचि बढावत दामिनी घन-घोर । धरनि तृन तनु रोम पुलकित पिय-समागम जानि , द्रुमनि वर वल्ली बियोगिनि मिलति है पहिचानि ।। हस, सुक, पिक, सारिका, अलि गुज नाना नाद ;. मुदित मडल भेक-भैकी, बिहग विगत विषाद । कुटज, कुमुद, कदंब, कोबिद कनक अरि, सुकज ; केतकी करवीर, बेलउ विमल बहुविध मजु । यह नामावली निरीक्षण का फल नहीं है। इसकी सूचना ‘कुमुद और 'कोबिद’ ( कोविदार ) पद दे रहे है । कचनार की शोभा वसन्त-ऋतु में ही होती है, जब कि वह फूलता है, और कुमुद की तो पत्तियाँ भी वर्षा-काल में अच्छी तरह नहीं बढ़ी रहतीं । यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि वस्तुओं की गिनती गिनाना ही वस्तु-विन्यास नहीं है । आस-पास की और वस्तुओं के बीच उनकी प्रकृत स्थापना से दृश्य के एक पूर्ण सुसङ्गत रूप की योजना होती है । “मौर लगे हैं, समीर चलता है, कोयल बोलती है इस 43