पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/८४

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काव्य में रहस्यवाद सच्चे कवि का काम नहीं मानते ; मतवादी का काम मानते हैं । मनुष्य का हृदय अत्यन्त पवित्र वस्तु है। उसे प्रकृत मार्ग से यो ही इधर- उधर भटकाने की चेष्टा, चाहे वह निष्फल ही क्यो न हो, उचित नहीं । मनुष्य-जीवन की वर्तमान और भविष्य स्थिति के सम्बन्ध में सूक्ष्म विचार द्वारा उपलब्ध तथ्यों और भावनाओ को मूर्त प्रत्यक्षी- करण आजकल योरप के काव्यक्षेत्र की सामान्य प्रवृत्ति है। सभ्यता की वर्तमान अवस्था मे, जव कि मनुष्य का ज्ञान विचारात्मक होकर वहुत विस्तृत हो गया है, ऐसा होना बहुत उचित और स्वाभाविक है। यहाँ पर यह दिखाने के लिए कि सूक्ष्म विचार और व्यापक दृष्टिवाले जीवित योरपीय कवियो की कविता भी कभी-कभी वादग्रस्त होकर किस प्रकार अपना स्वरूप बहुत कुछ खो देती है, हम अँगरेजी के आजकल के एक अच्छे कवि अवरक्रोवे ( Lascelles Aber- crombie ) को लेते हैं जो सङ्कुचित दृष्टि के सिद्धान्ती रहस्यवादी न होने पर भी अध्यात्म की ओर झुककर कभी-कभी रहस्योन्मुख हो जाते हैं । | अबरक्रोवे में योरप के वर्तमान कवियों की थोड़ी-बहुत सब प्रवृ- त्तियों पाई जाती हैं। कभी वे मिलो, कल-कारखानों आदि में काम करनेवाले मजदूरो की दुरवस्था पर, उनके साथ होनेवाले अन्याय और अत्याचार पर, करुणा और रोष प्रकट करते हैं; कभी जगत्, जीवन आदि के सम्बन्ध मे तत्त्वचिन्तन करते हैं, कभी शरीर, आत्मा, असीम-ससीम की जिज्ञासा की प्रेरणा से रहस्य-भावना में प्रवृत्त होते हैं। इसी जिज्ञासा के क्षेत्र में उन्होंने कहीं-कहीं परोक्ष-सम्बन्धी किसी वाद का प्रत्यक्षीकरण यो 'अज्ञात के अभिलाष’ का काव्यात्मक प्रति- पादन किया है “मूर्ख का अनुसन्धान-साहस ( The Fool's Adventure ) में उन्होंने ‘तत्त्वमसि' के निरूपण के लिए जीवात्मा और ब्रह्म को एक खासा संवाद कराया है। एक जिज्ञासु ईश्वर (ब्रह्म)