पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१०९

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साध की होली रामसिंह-प्राण रहसे अपना इतना रक्त कौन देता, मौजी ? भौजी-हाय ! यह मैंने क्या किया? इतना कहकर भौजी मूञ्चित होकर गिरने लगी । रामसिंह ने उसे दौड़कर सँभाला और धीरे से भूमि पर लिटा दिया । फिर योला- भौजी, जाता हूँ। भौजी ने एक बार ऑखें खोलकर कहा--देवर जानो, यह मेरी इस जन्म की अंतिम होली है ! रामसिंह-तो क्या अब होली नहीं खेतोगी, भौजी ? भौजी-खेलेंगी। रामसिंह-किससे? भौजी-तुमसे ? रामसिंह-मुझसे ? भौजी-हाँ, तुमसे। रामसिंह-हाँ ? भौजी-स्वर्ग में। रामसिंह-तब तो मैं वहाँ शीघ्र पहुँचता हूँ, मौजी। भौजी-जायो देवर, तुमसे पहले मैं पहुँगी।