पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/११०

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लचा कवि राजदर-बार में नए कवि की कविता मुनने लिये यथेष्ट संस्था में रईसों तथा दरबारियों को भीद एन्न हुई थी। सब लोग अपने- अपने स्थान पर शिष्टता-पूर्वक बैठे हुए महाराज के श्राने की राह देख रहे थे । एक पोर एक युवक, जिसकी अवस्या २५ वर्ष के लगभग थी, सिर मुकाए चुपचाप बैठा था। महाराज के सिंहासन के निकट एक श्रद्धबयस्क सजन, जो राज-कवि थे, बैठे हुए अपनी मूछे मरोड़ रहे थे, और बीच-बीच में युवक पर एकतीव दृष्टि सान्तकर सिर मुका लेते थे। उनके मुख पर व्यंग्य पूर्ण -हास्य ही एक इनकी रेखा दौड़ जाती थी। सहसा महाराज के सिंहासन के पीछे पड़ा हुआ मखमली परदा हटा, और दो दोबहार चाँदी की छड़ियों लिए हुए पाकर सिंहासन के दोनों ओर खड़े हो गए । उनमें से एक ने दरवारी ढंग से महाराज के आने की सूचना दी ! सब लोग संभलकर बैठ गए । फिर मदमजी परदा हटा, और एक ३० वर्ष का सुंदर मनुष्य घाखों में धकाध पैदा कर देनेवाले वस्त्र तथा जवाहरात-जड़े गहने पहने बड़ी शान के साथ धीरे-धीरे सिंहासन की योर आया। उसे देखकर सब लोग खड़े हो गए, और सबने दरवारी शिष्टता के अनु. सार प्रणाम किया। सबके प्रणाम के उत्तर में महाराज ने केवल सिर हिला दिया, और धाकर सिंहासन पर बैठ गए । सिंहासन के दाहिनी श्रोर एक वृद्ध सजन, जिनके सुख पर विद्वत्ता तथा अनुभव-शीलता केचित विद्यमान थे, खड़े थे । महाराज के बैठ जाने पर वह भीनपने