सधा कवि प्रवीणजी बीच ही में घोल ठठे-समय यथेष्ट था । इससे अधिक समय और क्या होता! महाराज ने कहा-ही. समय यथेष्ट था। मैंने स्वयं सोच- समझार समय दिया था । फिर भी पूर्ति न करने का क्या कारण है? . मोहनलाल चुप रहा। महाराज ने पूछा-क्यों, क्या कारण हुआ ? क्या तुम्हारी समझ में समय कम था? मोहनलाल ने कहा-नहीं श्रीमन, समय तो यथेष्ट था। महाराज-फिर? मोहनलाल-श्रीमन्, उस समस्या को पूर्ति में मेरा कुछ जी नहीं लगा। महाराज की भौहें तन गई। उन्होंने कहा-क्या कहा जी नहीं लगा। मोहनलाल-हाँ श्रीमन् । महाराज अधिकतर कुन्द होकर बोले- क्यों ? जी न जगने का कारण? मोहनलाल चुप रहा। महाराज कुछ उत्तजित होकर बोले-क्यों, तुम उत्तर क्यों नहीं मोहनलादं अभी तक सिर झुकाए खड़ा था। अब सीधा सनकर खड़ा हो गया । उसने कहा-श्रीमन्, कविता लिखना कुछ खेल नहीं है। संसार की कोई शक्ति कवि से जबरदस्ती कविता नहीं लिखा सकती। कवि की जब इछा होगी, जब उसका जी चाहेगा, जब उसे स्फूति होगी, तभी वह कविता लिखेगा । किसी की आज्ञा का पालन करने के लिये कवि कमी कविता नहीं लिखता । जो केवल ।
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१२१
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