पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चित्रशाला . . श्राज्ञा-पालन करने के लिये कविता लिखते हैं, वे सच्चे कवि नहीं, वरन् घृणित तुंछ हैं। मैं अत्यंत शिष्टता-पूर्वक श्रीमान् से यह निवेदन फींगा कि जो सचा, कदि है, वह केवल अपनी इच्छा और अपने हृदय का दास होता है, अन्य किसी का नहीं। यदि श्रीमान् ने मुझो केवल इसलिये अपने चरणों में श्राश्रय दिया है कि जय, जिस समय और जिस विषय पर श्रीमान् श्राज्ञा करें, टी विषय पर, उसी समय पर, मैं कविता लिन तो मैं अपने में इतनी धमता नहीं पाता । अतएव अत्यंत दीनता-पू के प्रार्थना करता हूँ कि मैं भविष्य में श्रीमान की सेवा करने के सर्वया अयोग्य हूँ। इस कारण, यदि श्रीमान् श्राशा दंगे, तो कल अपने देश को लौट जाऊँगा। यह कहकर मोहनलाल ने महाराज को मुककर प्रणाम किया, और चुपचाप महाराज के सामने से चला गया। मनुष्य चाहे जितना स्वार्थी, हठधर्मी, क्रोधी तथा अत्याचारी हो, परंतु निर्भीकता-पूर्वक कही हुई सच्ची और सीधी बात उसके हृदय पर प्रभाव अवश्य डालती है, चाहे वह एफ क्षण ही के लिये क्यों न हो। महाराज मोहनलाल की निर्मीकता-पूर्वक, परंतु साथ ही शिष्टता- पूर्ण, कही गई बातों से इतने प्रभावित हुए कि नब मोहनलाल उनके सामने से चला गया, तब उन्हें यह ध्यान पाया कि वह एक शक्ति-संपन्न. राजा है और मोहनलाल एक साधारण मनुष्य । अब उनके राजसी रक्त ने जोर मारा । उनका मुख क्रोध के मारे लाल हो गया । उन्होंने प्रवीणजी का पोर देखकर कहा-यापने इस लड़के की पृष्टता देखी! महाराज को क्रुद्ध देखकर प्रवीणजी मन-ही-मन अत्यंत प्रसन्न, परंतु ऊपर से गंभीर होकर योले-श्रीमन्, अपराध मा हो । मैं तो पहले हो से कहता था कि यह लड़का राज-समाधों के योग्य कदापि नहीं है। परंतु- 1