पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३१

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पथ-निर्देश १२३ घन०- घन.- मेरे जीवन का लक्ष्य यही है कि ईश्वर सुख-शांति के साथ खाने-पहनने-मर को देता जाय,बस । दूसरा-यह तो कोई अच्छा उत्तर नहीं । इस उत्तर से तो यही ज्ञात होता है कि तुम्हारे जीवन का कोई विशेष लक्ष्य नहीं है। क्यों न? धन०---तुम क्या इसे साधारण तक्ष्य समझते हो ? सुख-शांति के साथ पेट भरने को भोजन और तन ढकने को वस्त्र मिलते जाना क्या कोई साधारण घात है ? दूसरा--अरे यार, बस रहने दो । पेट-भर भोजन और वन तो संसार में सभी को मिल जाता है, इसमें खास बात कौन-सी है ? -मैंने जो बात कही है उसे पहले समझ लो, फिर कोई राय कायम करो। मेरा मतलब यह है कि भोजन और वस्त्र तो मिल ही जाता है। परंतु सुख-शांति तो बड़े भाग्यवान् ही पाते हैं। दूसरा-तुम्हारी यह बात कुछ जची नहीं। घन.-- -तुम्हें न जचे; पर है यह राथ्य की बात जब इस पर विचार करोगे, तब इसकी गंभीरता और महत्व समझोगे। यह वात बहुत दूर तक जाती है। दूसरा-पत्थर दूर तक जाती है ! परंतु इस में तुम्हारा दोष नहीं। जितनी तुम्हारी हैसियत है, उसी के अनुसार तुम्हारा हृदय है ; और जितना हृदय, उतनी ही बात कहोगे। तुम सुख-शांति से रोटी- कपड़ा मिलने को ही बहुत बड़ी बात समझ रहे हो। घन--निस्संदेह, मैं तो इतने ही को ईश्वर की सबसे बड़ी देनगी समझना हूँ। दूसरा-यह तो वही कहावत हुई कि भूखे से किसी ने प्रश्न किया, दो और दो कितने होते हैं ? भूखे ने तुरंत उत्तर दिया- 'चार रोटियाँ !" वैसी ही बात तुमने कही $