पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चित्रशाला घन- वन-वैर भई, जो तुम समझो, वही यही । श्राहा बतलायो, तुम्हारा क्या लक्ष्य है? दूसरा- मेरा लक्ष्य ? मेरा लक्ष्य है पण कमाना ; और मामूली रुपए नहीं, लाखों। मेरे जीवन का पहला लक्ष्य यह है कि मैं ननाधीश बनें । लक्ष्य के लिये लक्षाधीश कितना मुंदर पाया है,न कहोगे? क्या बात है श्रापकी ! आखिर ऋषि ही तो हरे । दृग्यरायदि मैंने अपने जीवन में दस-पाँच लाख रुपए न पैदा किए. तो यमदूंगा, मेरा जीवन व्यर्थ गया । धन-दस-पाँच लाग्य कमाने में तुम मुम्बी हो जाश्रोगे? दूसरा~यार, नुम पूरे चाँच ही रहे ! जिसके पास इम न्हाण्ड होंगे. वह सुखी न होगा, तो फिर कौन होगा ? सारं मुखों ही स्वान रुपया ही है। जिसके पास रुपया है, उसके मामने सब प्रकार के मुग्ध हाथ जोड़े खड़े रहते है। संभव है, तुम्हारा विचार ठीक हो ; परंतु मुझे तो इसमें संदेह है। दूसरा-संदेह हुमा ही चाह । कमी इतना रुपया शास्त्रों में तो देखा न होगा, फिर उस मुम्ब की सना कैसे सकने हो? -यार विश्वेश्वरनाथ, तुम भी कमी-कभी बच्चों की-सी बातें करने लगने हो । क्या अब मुझमें इतनी बुद्धि भी नहीं कि मैं यह भी फवरना न कर मा कि धन से मनुष्य को क्या-क्या सुख प्राप्त हो सभने ? कृत्रि वायरन ने, नो कमी मो जेलबान नहीं गया था, 'विज़नर श्रॉफ शेलान'-काव्य में एक कैदी की मानसिक अवस्था का किसना सुंदर और मच्चा चित्र वींग है। उसे पढ़कर तो यहसा यह विश्वास नहीं होता कि वह ऐसे व्यक्ति का लिया हुश्रा है, जो कभी जेलस्नान में नहीं रहा कल्पना में बढ़ी शक्ति है । विश्वेन्चर, इसी घना i कर बन०--- 1