पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पथ-निर्देश १२५ - कल्पना के बल पर कवि लोग बड़ी-बड़ी अद्भुत बातें सोच डालते हैं-"जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।" विश्वेश्वर--तो यह कहिए, आप कवि हैं ! यह तो मुझे श्राज मालूम हुआ। -केवल तुक भिड़ानेवाले कवि नहीं कहलाते, और न पद्य बनानेवाले ही कवि कहलाने के अधिकारी हैं । जो व्यक्ति संसार को, संसार के चित्र को, अपनी कल्पना-शक्ति से, अपनी कुशाग्र बुद्धि से शब्दों का ऐसा सुंदर और आकर्षक जामा पहनाता है कि जो उसे देखता है, मुन्ध हो जाता है, वही सच्चा कवि है, फिर वह चाहे अद्य-लेखक हो या पद्य-लेखक । विश्वेश्वर-केवन शब्दाडंबर का नाम कविता नहीं है। कवि वह है, जो संसार के सम्मुख कोई प्रादर्श उपस्थित करे, कोई नई बात रक्खे। -नया श्रादर्श और नई गत बहुत-से अादमी रखते हैं । महात्मा, नेता, दार्शनिक, प्राविधकारक, चित्रकार इत्यादि भी नए श्रादर्श, नए सिद्धांत और नई बात लोगों के सामने रखते ही हैं; पर चे कवि नहीं कहे जा सकते । कवि सो वही है जिसकी शब्द-योजना में आकर्षण हो, जादु हो, जो साधारण-से-साधारण बात भी इस ढंग से कहे कि सुननेवाले मुग्ध हो जाय । उसी समय सहसा कॉलेज की घंटी बजी। दोनों चौंक पड़े। घनश्याम बोला-बातों-बातों में वक्त हो गया, कुछ मालूम न हुश्रा । ( उठकर) चनो, चलें। दोनों बातें करते हुए धोरे-धीरे चल दिए । (२) उपर्युक्त घटना को हुए दस वर्ष व्यतीत हो गए । इस बीच में संसार में न जाने कितने परिवर्तन हो गए, न जाने कितने पैदा हुए, . धन- - .