चित्रशाला मानों को सर्वथा दोपी समझते हैं और मुसलमान हिंदुओं को। वास्तविक बात क्या है, इसपर कोई ध्यान नहीं देता। कुछ देर तक इसी प्रकार की बातें होती रहीं। इसके पश्चात् गंगा- पुत्र ने कहा-सरकार, ठंडाई तैयार है। उस व्यक्ति ने ठंडाई पी और स्नान करने के लिये गंगा-तट पर चला गया। (२) पं० गंगाधर पांडेय एक अच्छे और सुशिक्षित प्रादमी हैं । बजाज़ी की दूकान करते हैं । अपने मुहल्ले में श्रादर-प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखे जाते हैं। इन्हें व्यायाम का शौक बचपन ही से है । अतएव खूब वलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट हैं। कुश्ती भी अच्छी लढ़ते हैं, और लकड़ी चलाना भी जानसे हैं । हृदय के उदार है, सबसे प्रेम-भाव से मिलते हैं । कट्टर हिंदू होते हुए भी अन्य धर्मों के प्रति इनके हृदय में उप का लेश-मात्र नहीं है। इनके मुहल्ले में मुसलमानों के कई घर हैं। इन सबसे इनका मित्र-भाव प्रदोप-बत का दिन था। पांडेयजी प्रदोष का व्रत रखते थे, और उस दिन दूकान नहीं जाते थे । शाम को पूजन इत्यादि से निवृत्त होकर पांडेयजी अपनी बैठक में बैठे थे । उसी समय उनके पड़ोसी मियाँ हशमतली उधर से निकले । उन्हें देखते ही पांडेयजी बोले-ग्रजी शेख्न साहब, कहाँ चले ? शेख्न साहब खड़े हो गए. बोले- -जरा तफरीह ( मनोरंजन ) के लिये बाग़ की तरफ जा रहा हूँ। पांडेयजी-श्राइए, दो-चार मिनिट वैठिए, मैं भी प्रापके साथ चलूँगा। "बेहतर है" कहकर शेख साहब बैठक में चले श्राए, कुर्सी पर बैठते बोले अाज अाप दुकान नहीं गए? है और एक
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