सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चित्रशाला सधुवा बोला~मालिक का बेटा लिए । बस, यह ठीक है। नो चोर हो, सो डरे । जव पर नहीं, वो डर काहे का । (२) थाने में सूचना दे दी गई। दूसरे दिन थानेदार घोड़े पर सवार होकर दो सिपाहियों को साथ लिए हुए था धमके। पहले ठाकुर साहय से मिले । ठाकुर साहब ने उन्हें एकांत में ले जाकर बातचीत की । थानेदार ने पूछा-कहिए सरकार, मामला क्या है ? ठाकुर साहब बोले-मामला क्या, यापकी पाँचों था - थानेदार साहब की वारे खिल गई । बोले-सच ? ठाकुर साहय योले- तो मैं कभी वोलता ही नहीं। थानेदार कौन है? ठाकर साहब-सधुवा अहीर का लड़का, कानका अहीर । थानेदार-चोरी बिंदा मंहराज के यहाँ हुई है ? ठाकुर साहब-चोरी किस सुसरे के हुई है। यह सब आपको खातिर है। थानेदार-मापके भरोसे तो हम यहाँ जंगल में पढ़े ही हैं। नहीं तो यहाँ धरा क्या है । हाँ, यह तो बताइए, कुछ सबूत भी है? ठाकुर साहब-एक चमार कहता है कि उसने रात को कालका को विदा महराज के घर के पास एक आदमी से बातें करते देखा था। तलाशी लेने के लिये इतना ही काफी है। यह कहकर ठाकुर साहव हँसने लगे। थानेदार साहव बोले-फिर क्या है, कहाँ जाता है। हाँ, य तो बताइए, कानका के पल्ले भी कुछ है ? ठाकुर साहव-आप तो बच्चों की-सी बातें करते हैं। पल्ले न