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पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१८३

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ईश्वर का र होता, तो यह सब बाँधनू बाँधने की आवश्यकता ही क्या थी। आपने मुझे कोई नौंवा समझ रखा है। थानेदार साहब दाँतों-तले जीभ दबाकर बोले-श्राप हमारे मालिक है। हम मला ऐसा समझ सकते हैं! कुछ देर तक दोनों इसी प्रकार की बातें करते रहे । इसके बाद ठाकुर साहब बोले-अब आप जाइए। ढकना चमार के बयान पर कालका के यहाँ तलाशी लीजिए यह कहकर ठाकुर साहब ने कुर्ते की जेब से दो चाँदी के गहने निकाले, और थानेदार साहब के हाथ में देकर कहा-लीजिए, यह तलाशी के लिये मसाला। थानेदार साहब ने मुसकिराकर दोनों गहने जेब में रन लिए । फिर उठकर बोले-अच्छा, तो जाता हूँ। ठाकुर साहब-हाँ, जाइए। थानेदार साहव नरायनपुर चले दो घंटे के बाद थानेदार साहब लौटे । आगे-आगे थानेदार साहब थे, और पीछे दोनों सिपाही कालका की कमर में रस्सी बाँधे उसे ला रहे थे। हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई थीं। पीछे कालका का पिता सधुवा रोता हुआ पा रहा था । साथ में चार छः श्रादमी और भी थे। थानेदार साहब ने सब हाल कहा, और दोनों गहने कुर साहब के सामने रख दिए। ठाकुर साहब सब देख-सुनकर बोले-थानेदार साहब, कालका बेचारा बड़ा भला आदमी है । उसने ऐसा काम कैसे किया, कुछ समझ में नहीं पाता। थानेदार बोला-समझ में आवे या न आवे, इसको क्या करें ? जब सुबूत सामने रखा है, तब कानूनी काररवाई करनी ही पड़ेगी। गए। ।