पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१८४

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चित्रशाला - ho ठाकुर साहब ही, यह तो ठीक ही है, पर इतना मैं कह सकता हूँ कि यह कालका का काम नहीं है। सधुवा रोता हुआ वोला-मालिक, दूधों नहार्य, पूतों फलें। मालिक ने सची बात कही। मेरा बच्चा यह काम नहीं कर सकता। इन गाँववाले सालों ने दगा की है। भगवान् करे, टन पर गाज गिरे ! सालों के यहाँ कोई रोने-धोनेवाला न रहे। जैसे मेरे बच्चे को फैसवाया है, भगवान् देखनेवाला है। यह कहकर सधुधा फूट-फूटकर रोने लगा। ठाकुर साहब ने सचुवा को बुलाया-यहाँ तो श्रा सधुवा पास भाया । ठाकुर साहब टसे अलग ले जाकर बोले- सधुवा, यह हमें विश्वास है कि यह काम कालका का नहीं है। पर जब तलाशी में गहने निकले हैं, तो अब विना सज़ा पाए नहीं बचेगा। बंदी सजा होगी। सधुवा बोला-अरे मालिद, ऐसा न कहो। मेरा बुढ़ापा विगढ़ जायगा । बेमौत मर जाऊँगा । कोई उपाव करो। जो कुछ खर्च पड़ेगा, मैं दूंगा। वकील-बाविस्टर की फीस लो पड़ेगी, दूंगा । अपनी लुटिया-याली बेच डालूँगा । बच्चा बना रहेगा, तो तुम्हारी गुलामी करके बहुत कमा लेगा।" ठाकुर साहब बोले तो हमारी सलाह मानो। कचहरी-अदालत का झगड़ा न रस्तो। वहाँ न-बाने चित पड़े या पट ! यानेदार को को यहीं कुछ दे-लेकर मामला रफा-दफा कर दालो। सधुवा-यानेदार मान जायेंगे ? ठाकुर साहब-मानेंगे क्यों नहीं? हम कहेंगे, तो मान बार्यगे। सधुवा-ऐसा करा देव, तो मानिक, मैं वनम-भर गुन भानगा। ठाकुर साहव-अच्छी बात है। । .