ईश्वर का टर पर , - नहीं देता, और न कभी दूंगा । जव ठाकुर बाप असल में माँगंगे तो एकदम पचोस रुपए फेंक दूंगा। दो-दो, चार-चार करके तो इन्हें कभी दे ही नहीं; नहीं तो जनम-भर नहीं पटेंगे। कुछ-न-कुछ. बाकी लगी ही रहेगी। इसने तो समझ लिया है कि जहाँ अपने बाल-बच्चों के लिये कमाते हैं, वहाँ डेढ़ रुपए महीना देकर ठाकुर का भी मुँह मुलखते रहेंगे। ४ . यदि लोगों से पूछा जाय कि संसार में पाप कौन अधिक करता है, तो अधिकांश लोग यही उत्तर देगे कि निर्धन श्रादमी । परंतु यदि हमसे पूछा जाय, तो हम यही कहेंगे कि धनी श्रादमी जितना पाप करता है, उसका दशांश भी निर्धन श्रादमी नहीं करता। यदि औसत निकाला जाय, तो वेईमानों, व्यभिचारियों, चोरों, झूठों और बदमाशों की अधिक संख्या धनाढ्यों में ही मिलेगी। धनी श्रादमी का पाप करने का अवसर जैसे आसानी से मिल जाता है, वैसे निर्धन को नहीं । पाप करने के लिये जितना साहस धनी के हृदय में होता है, उतना निधन के हृदय में नहीं। और, जितनी जल्दो निर्धन का पाप प्रकट हो जाता है, उतनी जल्दी बड़े श्रादमी का नहीं। छोटे आदमी पर लोगों को जल्दी संदेह होता है, और इसलिये उसका पाप प्रकट हो जाता है। पाप प्रकट हो जाने पर निर्धन के पास भपने को निर्दोप प्रमाणित करने का कोई साधनं नहीं रहता, इस कारण वह शीघ्र दंड पा जाता है। इसके प्रतिकूल, धनी बढ़े प्रादमी पर संदेह करने का साहस लोगों में बहुत कम होता है, इसलिये उसका पाप प्रकट नहीं होता । यदि प्रकट भी हो गया, तो 'धन के बल से वह प्राय: उसके लिये दंढ पाने से बच जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बड़े श्रादमियों के पॉप के लिये छोटे आदमी दंड पाते हैं, और बड़े श्रादमी साफ बच जाते हैं। - . -
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९१
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