पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९२

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१८६ चित्रशाला . पूर्वोक्त घटना हुए एक वर्ष व्यतीत हो गया । शाम का समय था । सधुवा एक नीम के वृक्ष के तले वा तंबाकू पी रहा था । गाँव के दो-चार श्रादमी उसके पास बैठे हुए थे। उसी समय एक आदमी घबराया हुधा श्राया, और सधुवा से बोना-काका, बड़ा ग़ज़ब हो गया । सधुवा बोला-क्या दृश्या ? वह बोला-सिवदीन मर गया । सधुवा ने चकित होकर पूछा-मर गया ? वह बोला-हाँ। सधुवा-कैसे ? मधेरे तो श्रच्छा मला काम पर गया या ! चह-ठाकर ने मरवा ढाला । सधुवा-ऐं! तू वकता क्या है ? वह-बकता नहीं, ठीक कहता हूँ। सधुवा-कैसे मरवा डाला? वही व्यक्ति-वह काम कर रहा था । इतने में उसे प्यास लगी। वह पानी पीने गया। पानी के बाद थोड़ी देर बैठा रहा । इतने में ठाकुर उधर पानिकले । उन्होंने डाँटकर कहा क्यों रे, बैठा क्या करना है, काम नहीं करता। सिबदिनबा बोला--मालिक, अभी- अभी पानी पीने को प्राया था। अब जाता हूँ। ठाकुर बोले- उठ नदी । उसने कहा--मालिक अभी जाता हूँ, जरा मुस्ता लू । इतना सुनने ही ठाकुर ने एक लात मारी, और कहा-साले, सुस्ताने पाया है:या काम करने ? बस, इतना सुनना था कि सिवदिनवा बोला-वह क्या बोला, उसके सिर पर मौत खेजती थी, उसीने. बुलवाया-मालिक दिन-भर तो काम किया । हम भी श्रादमी है, कोई जानवर नहीं है। ऐसी मजूरी हमें नहीं करनी । कल से हम नहीं पायेंगे। और कोई आदमी ढूंढ़ लेना । यह कहकर वह