पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६६

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। सेठजी बोले-श्रजी मैं इसी करता हूँ पंडितजी, आपको क्या कमी है। खैर, भगवान् शुभ करें। मेरे लायक जो कुछ हो, विना संधोत्र कहिएगा। पंडितजी प्रसन्न मुम्न होकर बोले-पहली बात यह है कि श्राप बारात में अवश्य सम्मिलित हों। सेठजी-जल, सौ काम छोड़ के। हाँ और ? पंडितजी-दूसरी बात यह कि बारात के लिये अपनी सवारियों दीजिएगा। सेठजी-बड़ी बुशी से । इस समय मेरे यहाँ दो मोटरें, एक फिठन और एक घोन्द्रों की जोड़ी है। ये तीनों यापकी सेवा के लिये प्रन्नुत है। मोटरें तो वैसे तीन है, पर एक अाजकल कुछ नाम्मत मांग रही है। पंडितजी-दो मोटरें कानी है, जोड़ी भी काम या जायगी। इसके पश्चात् थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के पश्चात् पंडितजी विदा हुए। 1 हेरिसन रोड की एक सुंदर अट्टालिका के द्वार पर एक बारात सनी खड़ी हैं। लहणों से पंगा प्रतीत हो रहा कि बारात विवाहो. परांत विदा हो रही है । क्योंकि द्वार पर एक सुंदर पालकी, जिस पर सुनहरी कारचोबी का परदा पड़ा हुआ है, खड़ी है। इसके अतिरिक्त दहेज का बहुत मामान रक्ता हुत्रा है }