पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिणाम . . - . होती; क्योंकि पाठक समझ गए होंगे कि यह वृद्ध हमारा परिचित वही रामला है जिसे हम पहले-पहल भिक्ष क-वेष में देख चुके हैं। आभूषणों से सुसज्जित पोडशी उसकी वही कन्या है जिसे हमने एक दिन अग्निकुंड के पास भूमि पर पड़े देखा था। पाठक, आश्चर्य मत कीजिए, यह वही मलिना, धूरि-धूसरिता, जीर्ण-शीर्ण-वस्त्राच्छा- दिता, अर्द्ध-नग्ना रामलाल की पन्या है। अब वह वालिका नहीं रही, अब वह पोडशी सुंदरी है । वह कुमारी नहीं है, अब वह वह नव-विवाहिता नव-बधृ है । वृद्ध ने अपने को सँभालकर कहा- बेटा श्यामा, अपने बूढ़े बाप को अधिक मायामोह में न फंसायो । मेरे आँसू शोक के आँसू नहीं, यानंद के आँसू हैं । श्यामा अपने पिता के कंधे पर से सिर काकर उसके मुँह की योर देखकर बोनी-बावा, तुमने मेरे लिये बड़े दुख उठाए, छोड़ते मेरा कलेजा फटता है। जान पड़ता मुख को, जो रोने के कारण रक्त- वर्ण हो रहा था, देखकर तथा उसके उपर्युक्त वाक्य सुनकर रामलाल का हृदय व्यथित हुआ; क्योंकि उसके नेत्रों से अश्रु. साव, जो अब कम हो चला था, पुनः बढ़ गया। रामलाल ने पुरुषोचित धैर्य से काम लेते हुए अपने को संभाल. कर कहा-बेटी, ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद है कि मैं, जिसको सुबह से शाम तक अपना पेट-मात्र भरने के लिये गली-गली भटकना पढ़ता था, श्राज तेरा विवाह इस धूम से करने में समर्थ हुा । तू मेरे जीवन की स्फूर्ति है, तू मेरी सफलताओं का हेतु है। तू न होती, तो मैं उसी जीवन में एड़ियाँ रगड़कर मर जाता। तेरे ही कारण मुझे जीवन-क्षेत्र में असफलताओं, बाधाओं तथा कप्टों से घोर युद्ध करना पड़ा। अंत में मेरी विजय हुई। क्यों ? इसलिये कि तू मेरे साथ थी। जिस समय मैं असफलताओं के आगे निर्जीव होकर गिर पड़ने