सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिणाम . पास ही दो दासियाँ तथा एक दास खड़ा था। रामलाल ने उनसे कहा-जाओ, पालकी में बिठा प्राओ। दासियाँ श्यामा को ले चलीं। पीछे-पीछे वे स्त्रियाँ भी चली । श्यामा दासियों की हिरासत से भागकर एक बार पुनः पिता से लिपट गई । रामजाल की आँखों से पुनः अश्रु-पात होने लगा। कुछ क्षणों पश्चात् उसने श्यामा को बलपूर्वक अपने से अलग करके दासियों के सिपुर्द कर दिया। वारात विदा होने के पश्चात् दो घंटे व्यतीत हो गए। रामलाल एक व्यक्ति से खड़ा कह रहा है-पंडित कालिकाप्रसादजी, आपने मेरे रिश्तेदार बनकर और अपने परिवार की स्त्रियों द्वारा विवाह का सब कार्य कराकर इस समय मेरी जो सहायता की है इसके लिये मैं श्रापका चिर कृतज्ञ रहूँगा। परंतु मेरा अनुभव है कि केवत जबानी कृतज्ञता के प्रकट करने से मनुष्य का हृदय संतुष्ट नहीं होता। अतएव आपको मैं यह पाँच सहन रुपए देता हूँ। यह कहकर रामलाल ने कालिकाप्रसाद के हाथों में नोटों का एक मोटा बंडल दे दिया। इसके पश्चात् रामलाल ने कहा-अब आप अपने घर जा सकते हैं। कालिकाप्रसाद ने कहा-तो क्या सरकार, अव मुझे बरखास्त रामलाल-नहीं, ऐसा कर्कश शब्द मैं नहीं कह सकता । मैं केवल इवना कहता हूँ कि मुझे अब आपकी आवश्यकता नहीं रही। यह न समझिएगा कि मैं किसी दूसरे भादमी को रक्लंगा । नहीं, भव मैं अपना सारा कारोबार बंद करता हूँ। कालिकाप्रसाद ने विस्मित होकर पूछा-ऐसा क्यों ? रामलाल-जिस कार्य के लिये मैं धनोपार्जन करता था, मेरा वह कार्य पूरा से गया । अन मुझे धनोपार्जन करने की कोई भावश्यकता