पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/७०

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चित्रशाजा नहीं रही। मेरे पास जो कुछ है, वह मेरे शेप जीवन के लिये पर्याप्त है। कालिकाप्रसाद रुपए मिलने से प्रसन्न चित्त और नौकरी छूटने से म्लान-मुख होकर धीरे-धीरे रामलाल के पास से चल दिए। (१) अाज हम रामलाल को उसी नगर के एक विशाल हिंदू-होटन में बैठे देख रहे हैं जिस नगर की गलियों में यह एक दिन मिक्षा माँगता फिरता था। जब संध्या-देवी प्रकृति पर अपनी काली चादर फैज्ञा रही थी, उस समय उक्त होटश से रामजाल मलिन बन्न पहने हुए निकला और सीधा टम स्थान पर पहुंचा, जहाँ किसी समय वह भिक्षुक की हैसियत से एक मडैया में रहता था। वहाँ पहुंचकर उसने देखा कि उसके प्राचीन निवाल-स्थान की बस्ती टतनी बनी नहीं रही जितनी उसके समय में थी । इस समय वहाँ केवल दो तीन मईयाँ पड़ी हुई थीं। मनुष्य भी छ:-सात से अधिक न थे टनमें से अधिकांश उसके लिये अपरिचित थे। रामजात ने एक भिक्षुक से पूछा-क्यों भाई, यहाँ कोई सधुश्रा दाम का भिखारी है। पाश्चर्य से उसकी ओर देखकर एक ने कहा-नहीं, यहाँ तो इस नाम का कोई भिखारी नहीं है। रामलाल ने कहा-पाठ बरस हुए तय तो वह यहीं रहता था। एक मिनुक ने कहा-तुम भी जमाने की बात करते हो, वरस में दो न-जाने कौन-कौन मरा और कौन जिया होगा। रामनाज ने पूछा-तुम लोग यहाँ कितने दिनों से हो ? दूसरे भिवुक ने कहा-यही कोई साल-मर हुआ। एक बेर न्युनि- सिपलेटी ने सत्र मईयाँ उखड़वाकर फिकवा दी थीं और सब भाइयों