पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/७५

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परिणाम ६७ " रुपए देते हुए कहा-"तुमने जो सहायता दी, उसका यह पुरस्कार है।" मैं रुपए लेने ही को था कि मुझे एकदम नौकरी की बात याद आ गई । अतएव मैंने उनसे कहा-"ये रुपए में कितने दिन खाऊँगा, कृपा करके श्राप कोई नौकरी दिलवा दें, तो बड़ा पुण्य हो।" यह सुनकर पहले तो वे कुछ विस्मित फिर कुछ सोचकर उन्होंने कहा-अच्छा। खैर मुझे उन्होंने २१) मासिक पर नौकर रख लिया । मैं उनके यहाँ दो साल तक तो तकाजा वसूल करने का काम करता रहा । इस बीच में मैंने मुढ़िया में बही-खाता लिखना सीख लिया और हिंदी भी पढ़ ली। दो साल पश्चात् उन्होंने मुझे मुनीमी का काम दे दिया और मेरा वेतन सौ रुपए मासिक कर दिया। इसी प्रकार दो साल और बीते। दो साल बीत जाने पर मैंने एक दिन अपने मालिक पर यह इच्छा प्रकट की कि मैं अपना कोई रोज़गार अलग करना चाहता हूँ । मेरे परिश्रम तथा ईमानदारी से वे मुझ पर इतने प्रसन थे कि उन्होंने मुझे पच्चीस हज़ार रुपए विना सूद उधार दे दिए । मैंने उन रुपयों से एक छोटी-सी मोज़ा-बनियाइन इत्यादि की दुकान खोल ली। दूकान चल निकली। एक दिन मुझे सनक सवार हुई कि कुछ सट्टेबाजी भी करूँ। दस फिर क्या था, सट्टेबाजी करने लगा। सट्टेबाजी में मैंने एक ही वर्ष के भीतर दो लाख रुपए कमा लिए । बस, दो लाख रुपए हो जाने पर मैंने सट्टेबाज़ी एकदम छोड़ दी और ठेकेदारी करनी प्रारंभ की । ठेकेदारी में भी साल-भर में काफी रुपया पैदा किया । मैंने अपने स्वामी से २५ सहस्र रुपए जो उधार लिए थे, वे मैंने उन्हें जौटा दिए। यह मेरी संक्षिप्त कहानी है । इतना कहकर रामलाल .