चित्रशाला - . रामभजन-तनिक एकांत में चलिए। मुसद्दीलाल एक कमरे में गए. और बोले-~-कहो, क्या बात है ? रामभजन ने नोटों का बंडल निकालकर उनके हाथ में रख दिया। मुसहीलाल चकित होकर बोले-यह क्या ? राममजन-ये श्रापके दो हजार रुपए है। आपका वह नौकर बेकसूर है। नोट सचमुच गिर पड़े थे, रास्ते में मुझे पड़े मिले थे। मुझे मालूम न था, किसके हैं, इसलिये मैंने इन्हें अपने पास रख लिया था । अय प्राज मालूम हुश्रा, तो लाया । मुसहीलाल ने विस्मय, हर्प तया प्रशंसात्मक दृष्टि से राममान को देखा । इसके पश्चात् नोट गिने । नोट देखकर बोले--पर मैंने तो सम्र सौ-सौ के मंगाए थे, इसमें तो दस-दस के हैं ? रामभजन-अब यह बात मत पूछिए । एक आदमी को सौ-सौ के नोटों की जरूरत थी, उसे मैंने इनमें से दे दिए और उससे दस. दस के ले लिए । चाहे दस-दस के हो चाहे सौ-सौ के, इससे आपको क्या मतलब ? दो हजार के तो हैं । लाला मुसहीलान बोले-हाँ. पूरे दो हजार के हैं । यह कहकर उन्होंने दस-दस रुपए के दस नोट निकालकर रामभजन को दिए। रामभजन ने पूछा- इन्हें क्या करूं? लाला-यह आपकी ईमानदारी को पुरस्कार है। रामभजन-नहीं-नहीं, इन्हें रहने दीजिए। मैं ऐसा पुरस्कार नहीं चाहता। लासा-नहीं, चे तो श्रापको लेने ही पड़ेंगे। श्रापकी बदौलत हमें ये मिले हैं। हम तो इनसे हाथ ही धो चुके थे। धाप इन्हें न लेंगे, तो हमें रंज होगा। रामजनतेर, जैसी श्रापकी इच्छा । अब ईश्वर के किये।
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९६
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