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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/११८

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अन्योक्ति

लाल होगे सुख मिले खीजे मले।
वे पड़े पीले डरे औ दुख सहे॥
रॅग बदलने की उन्हें है लत लगी।
गाल होते लाल पीले ही रहे॥

हैं उन्हें कुछ समझ रसिक लेते।
पर सके सब न उलझनों को सह॥
है बड़ा गोलमाल हो जाता।
गाल मत गोल गोल बातें कह॥

है निराला न आँख के तिल सा।
और उस मे सका सनेह न मिल॥
पा उसे गाल खिल गया तू क्या।
दिल दुखा देख देख तेरा तिल॥

आब में क्यों न आइने से हों।
क्यों न हों कांच से बहुत सुथरे॥
पर अगर है गरूर तो क्या हैं।
गाल निखरे खरे भरे उभरे॥