पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१४०

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अन्योक्ति

जो निराला रग बू रखते रहे।
फूल ऐसे बाग मे कितने खिले॥
जो कि रस बरसा बहुत आला सके।
वे रसीले कंठ है कितने मिले॥

है भला ढंग ही भला होता।
क्यों बुरे ढंग यों सिखाते हो॥
क्या बुरी लीक है पसद तुम्हे।
कंठ तुम पीक क्यों दिखाते हो॥

पूजते लोग, रंग नीला जो।
पान की पीक लौ दिखा पाते॥
कंठ क्या बन गये कबूतर तुम।
था भला नीलकठ बन जाते॥

क्यों रहे गुमराह करते कौर को।
क्या नहीं गुमराह करना है मना॥
जब सुराहीपन नहीं तुझ में रहा।
कठ तब क्या तू सुराही सा बना॥