पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१५

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चोखे चौपदे

हरि भला आँख में रमे कैसे।
जब कि उस में बसा रहा सोना ।
क्या खुली आँख श्री लगी लौ क्या ।
लग गया जबकि आँख का टोना ॥

मंदिरों मसजिदों कि गिरजने में ।
खोनने हम कहाँ कहाँ जावें ॥
आप फेले हुए जहाँ में है।
हम कहाँ तक निगाह फैलावें ॥

जान तेरा सके न चौड़ापन ।
क्या करेंगे विचार हो चौड़े।
है जहाँ पर न दोड़ मन की भी।
वाँ बिचारी निमाह क्या दौड़े ॥

भौं सिकोड़ी बके झके; बहके।
बन बिगड़ लड़ पड़े अड़े अकड़े ॥
लोक के माथ सामने तेरे।
कान हम ने कभी नहीं पकड़े ॥