पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गागर में सागर

हो कहाँ पर नही झलक जाते।
पर हमे तो दरस: हुआ सपना ॥
कब हुआ सामना नही, पर हम।
कर सके सामने मे, मुंह अपना ॥

जो अँधेस है भरी जी में उसे ।
हम अँधेरे में पड़े खोते नही ॥
उस जगत की जोत की भी जोत के।
नोतवाले नख अगर होते नहीं ॥

लोक को निज नई कला दिखला ।
पा निराली दमक दमकता है ॥
दूज का चन्द्रमा नहीं है यह ।
पद चमकदार नख चमकता है ॥

कर अजब आसमान की रगत ।
ए सितारे न रंग लाते है ॥
अनगिनत हाथ-पाँव वाले के ।
नख, जगा जोत जममगाते है ॥