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काम के कलाम
दीन दुखियों पर पसीजें क्यों न हम।
देख उन की आँख से आँसू छना॥
क्यों किसी की वे गरम मूठी करें।
है न उन के पास मूठी भर चना॥
सब जगह वे ही सदी माने गये।
मान का जो मान रख करके जिये॥
हम लथेड़ें तो लथेड़ें क्यों उसे।
खा थपेड़े लें न पड़े के लिये॥
खोल दिल दान दें, खिला खायें।
धन दुआ कब धरम किये से कम॥
धन अगर है बटोरना हम को।
तो बटोरे न हाथ अपना हम॥
हैं बुरा काम कर बुरा करते।
यह बुरा काम ही बताता है॥
दिल दुखा दिल दुखा नही किस का।
पाप कर हाथ कॉप जाता है॥