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चोखे चौपदे

ध्यार के सारे निराले ढंग जब।
छल कपट के रग मे ढाले गये॥
हित-नियम आले न जब पाले पले।
तब गले में हाथ क्या डाले गये॥

धर्म ही है साथ जाता जीव के।
तन चिता तक ही पहुँच पाया मरे॥
रह गई धरती यही की ही यही।
कौन छाती पर गया धन को धरे॥

क्यों न पाये थल भली रुचि ऑख मे।
क्यों बुरी रुचि हाथ से जाये पिसी॥
जाय जम जो प्यार जड़ जी मे न तो।
जाय गड़ छाती न छाती में किसी॥

है सताना भला नही होता।
क्यों किसी को गया सताया है॥
पक गये तो गये बला से पक।
क्यों कलेजा गया पकाया है॥