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काम के कलाम
दूसरों को किस लिये है दे रहे।
वे दिलासा खोल दिल दे ले हमें॥
लोकहित की लालसाओं से लुभा।
ले सके तो हाथ में ले लें हमे॥
श्राप के है, है सहारा आप का।
क्यों बुरे फल आप के चलते चखें॥
दे न देखें दूसरो के हाथ मे।
रख सके तो हाथ में अपने रखे॥
किस लिये पीछे उसी के हैं पड़े।
आप के ही हाथ में है जो पड़ा॥
क्या बँधाना हाथ उस का चाहिये।
सामने जो हाथ बाँधे है खड़ा॥
साथ कठिनाइयां सकल झलकी।
खुल गये भेद तब मिले दिल के॥
हित-बही पर चले सही करने।
जब हिले हाथ दो हिले दिल के॥