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चोखे चौपदे

लोथ पर लोथ तो नही गिरती।
लोभ होता उसे न जो धन का॥
लाखहा लोग तो न मर मिटते।
मन अगर जानता मरम मन का॥

एक मन है नरमियों से भी नरम।
एक मन की फूल जैसी है फबन॥
एक मन की रगतें है मातमी।
संग को है मात करता एक मन॥

मान ईमान तो करे कैसे।
जो समझ बूझ बेइमान बने॥
तो सके जान दुख दुखी कैसे।
मन अगर जान सब अजान बने॥

भेद है तो भेद क्यों होता नही।
भेद रख कर भेद पहचाने गये॥
जन न सनमाने गये सब एक से।
औ न सब मन एक से माने गये॥