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निराले नगीने

बात लगती बोलियां औ विदअतें।
कब कहा किस ने सुखी बन कर सहीं॥
क्यों सताये एक मन को एक मन।
एक मन क्या दूसरे मन सा नही॥

निज दुखों सा गिने पराये दुख।
पीर को ठीक ठीक पहचाने॥
तो न मनमानियां कभी होगी।
जो मनों को समान मन माने॥

तो सितम पर सितम न हो पाते।
तो न होती बदी बड़े बद से॥
तो न दिल चूर चूर हो जाते।
चूर होता न मन अगर मद से॥

सुख मिले सुख किसे नहीं होता।
हैं सभी दुख मिले दुखी होते॥
मन सके मान या न मान सके।
हैं सफल मन समान ही होते॥