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चोखे चौपदे

नाम सनमान सुन नहीं पाता।
देख मेहमान को सदा ऊबाना॥
मान का मान कर नही सकता।
मन गुमानी गुमान में डूबा॥

है उसी एक को कला सब में।
किस लिये नीच बार बार नुचा॥
काम लेवे न जो कमालों से।
तो कहा मन कमाल को पहचा॥

है जगत जगमगा रहा जिस से।
जो मिला वह रतन न नर-तन मे॥
कर बसर जो सके न सरबस पा।
तो भरी है बड़ी कसर मन में॥

जो न रॅग जाय प्यार रंगत में।
तो उमग क्यों उमग में आवे॥
किस लिये धन समान तो उमड़े।
मन दया-चारि जो न बरसावे॥