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निराले नगीने

अनगिनत जग बिसात मोहरों का।
कौन मन के समान माहिर है॥
घह समझ बूझ सोत का सर है।
शान की जोत का जवाहिर है॥

चैन चौपाल चोज चौबारा।
चाव चौरा चबाव आँगन है॥
चाल का चौतरा चतुरता कल।
चाह थल चेतना महल मन है॥

है पुलकता लहू सगों का पी।
बाप को पीस मूस मा का धन॥
कब उठा कांप पाप करने से।
पाप को पाप मान पापी मन॥

है कतरब्योंत पेच पाच पगा।
छल उसे छोड़ता नही छन है॥
मौत का मुँह मुसीबतों का तन।
सांप का फन कपट भरा मन है॥