पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१८९
निराले नगीने

छानते तो बड़े बड़े जगल।
और जो यह समुद्र बन जाता॥
डालते पीस पर्वतों को हम।
मन डिगाये अगर न डिग पाता॥

डालते किस लोक में डेरा नहीं।
डर गये कोई नही कुछ बोलता॥
धाक से तो डोल जाता सब जगत।
जो न डावाडोल हो मन डोलता॥

आँख में तो नये नये रस का।
बह न सकता सुहावना सोता॥
चहचहे तो न कान सुन पाता।
जो दिखाता न रग मन होता॥

रग जाता बिगड़ लताओं का।
पेड़ प्यारा हरा बसन खोता॥
फूल रंगीनियां न रह पातीं।
रग लाता अगर न मन होता॥