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चोखे चौपदे

जीभ रस-स्वाद तो नही पाती।
तो पिरोती न लेखनी माती॥
मोहती नाक को महॅक कैसे।
जो न मन की कुमक मिली होती॥

रख सके आन बान जो अपना।
हैं हमे मिल सके नही वैसे॥
सामने झुक गये हठीले सब।
मन हठी ठान ले न हठ कैसे॥

चाँद सूरज चमक दमक खो कर।
जॉयगे बन बनाय बेचारे॥
जोत मन की न जो रहे जगती।
तो सकेंगे न जगमगा तारे॥

तो रुचिरता कहा रही उस मे।
रुचि हितों में रहे न जो पगती॥
तो भले का कहां भला मन है।
जो भलाई भली नहीं लगती॥