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चोखे चौपदे

कर सकेगा और का कैसे भला।
जो भलाई में लगाया तन न हो॥
हो सकेगा तो न पूरा हित कभी।
जो भरा हित से पुरोहित मन न हो॥

है बल के लिये बड़ा बल वह।
धाक गढ़ आनबान देरा है॥
धीरता धाम धवरहर धुन का।
बीर-मन बीरता बसेरा है॥

है गगन तल मे हवा उस की बॅधी।
धाक उस की है धरातल में धँसी॥
कौन साहस कर सका इतना कभी।
साहसी मन ही बड़ा है साहसी॥

आँख मे सुरमा लगाया है गया।
है धड़ी की होंठ पर न्यारी फबन॥
भूलती हैं चितवने भोली नहीं।
तन हुआ बूढ़ा हुआ बूढ़ा न मन॥