पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२२९

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निराले नगोने

फूल रस रूप गंध पर रीझे।
किस तरह से सितम सकेगा थम॥
क्यों समझ तू सका न कोमलपन।
हाथ क्या यह कमीनपन है कम॥

आँख है रूप रग पर रीझी।
कम महँक पा हुई न नाक मगन॥
हाथ तुझ मे कभी नहीं है कम।
मोह ले जो न फूल कोमलपन॥

हाथ तुम बचते कि वे मैले न हों।
तोड़ते तो पीर हो जाती कही॥
जो लगी होती न लत की छूत तो।
तुम अछूते फूल छूते ही नहीं।

लाल लाल हथेलियाँ हैं पास ही।
जो कमल-दल से नहीं हैं कम भली॥
हाथ तुम फैलो न फूलों के लिये।
उँगलियों क्या है न चम्पे की कली॥