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चोखे चौपदे

उलझनों में रहे न वह उलझा।
कुछ न कुछ दुख सदा लगा न रहे॥
नित न टाँगे रहे उसे चिन्ता।
जी बिना ही टॅगे टॅमा न रहे॥

बात अपने भाग की हम क्या कहें।
हम कहाँ तक जी करें अपना कड़ा॥
फट गया जी फाट में हम को मिला।
बॅट गया जी बाँट में मेरे पड़ा॥

देखये चेहरा उतिर मेरा गया।
हैं कलेजे में उतरते दुख नये॥
फेर में हम है उतरने के पड़े।
आँख से उतरे उतर जी से गये॥

है बखेड़े सैकड़ों पीछे पड़े।
है बुरा काँटा जिगर में गड़ गया॥
फँस गये हैं उलझनों के जाल में।
है बड़े जंजाल में जी पड़ गया॥