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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२४

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गागर में सागर

हाथ ऊंचा सदा रहा किस का।
हित सकल सुख सहज सहेजे में ॥
कबि करामात कर दिखाता है।
ढाल जल जल रहे कलेजे में ॥

है किसी के न पास रस इतने।
है रसायन बना बचन किस का ॥
कवि सिवा कौन लग लगा उस के।
है कलेजा सुलग रहा जिस का ॥

तो भला क्या कमाल है कबि में।
जो सका कर कमल न नेजे को ॥
गोद में प्यार है पला जिस की।
गोद देवे न उस कलेजे के ॥

चाँद को छोल चाँदनी को, मल।
रंग दे लाल, लाल रेजे में ॥
कबि कहा कर बदल कमल दल को।
छेद कर दे न छबि कलेजे में ॥