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तरह तरह की बातें
क्यों वही है आँख का काँटा हुआ।
आँख जिस को देख सुख पाती रही।।
जी हमारा क्यों जलाता है वही।
पा जिसे छाती जुड़ा जाती रही।।
बावला हो जाय जी कैसे नही।
ऑख से कैसे न जलधारा बहे।।
है कलेजे मे छुरी वह मारता।
हम कलेजे में जिसे रखते रहे।।
फूल से हम जिसे न मार सके।
है वही आज भोंकता भाला॥
आज है खा रहा कलेजा वह।
है कलेजा खिला जिसे पाला।।
क्यों कलेजा न प्यार का दहले।
ले कलेजा पकड़ न क्यों नेकी।।
बाप के मोम से कलेजे को।
दे कुचल कोर जो कलेजे की॥