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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२५२

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चोखे चौपदे

किरकिरी बह आँख की जाये न बन।
जो हमारी आँख का तारा रहा।।
कर न दे टुकड़े कलेजे के वही।
है जिसे टुकड़ा कलेजे का कहा॥

सुख अगर दे हमे नही सकता।
तो रखे लाज दुख अंगेजे की॥
वह फिरे देखता न कोर कसर।
कोर है जो मेरे कलेजे की॥

दूसरा क्या सपूत करता है।
किस तरह मुँह न मोड़ लेवे वह॥
पीठ पर हो उसे फिरे लादे।
पीठ कैसे न तोड़ देवे वह॥

निराली धुन

मिल गई होती हवा में ही तुरत।
चाहिये था चित्त वह लेती न हर॥
जो उठी उस से लहर जी मे बुरी।
तो गई क्यों फैल गाने की लहर॥