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बहारदार बातें

आज काँटे बखेर कर जी में।
फूल भी हो गया कटीला है॥
चिटकती देख कर गुलाब-कली।
चोट खा चित हुआ चुटीला है॥

बसंत बयार

फूल है घूम घूम चूम रही।
है कली को खिला खिला देती॥
है महँक से दिसा महँकती सी।
है मलय-पौन मोह दिल लेती॥

है सराबोर सी अमीरस में।
चाँदनी है छिड़क रही तन पर॥
घूम मह मह महक रही है वह।
बह रही है बसंत की बैहर॥

मंद चल फूल की महँक से भर।
सूझती चाल जो न भूल भरी॥
आँख में धूल झोंक धूल उड़ा।
तो न बहती बयार धूल भरी॥