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चोखे चौपदे
जब कि चालाको न चालाकी रही ।
ओख उस पर तब न क्यों दी जायगी ॥
लोग उँगली क्यों उठायेंगे न तब ।
जब कि उँगली आँख में की जायगी ॥
है खटकती किसे नही दुनिया ।
लग सके कब खुटाइयों के पते ॥
तब परखते अगर परख वाली ।
आँख के सामने उसे रखते ॥
क्यों कहें क्गालपन को भी कभी ।
हैं खुली आँखें हमारी जाँचती ॥
सामने जो वे न नाचे ऑख के ।
भूख से है आँख जिन की नाचती ॥
खिल उठे देख चापलूसों को।
देख बेलौस को कुढ़े कांखें ॥
क्यों भला हम बिगड़ न जायेंगे।
जब हमारी बिगड़ गई आँखें ॥