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१९
केसर की क्यारी


है जिसे सूझ ही नहीं उस को ।
क्या करेंगे उधार कर आँखें ॥
है प्रसरता जहां अंधेरा वां।
क्या करेंगे पसार कर आँखे ॥

कब जाओ न" उलझनों मे पड़ ।
जगलों को खंगाल कर देखो ॥
डाल दो हाथ पॉव मत अपना ।
आँख मे श्रॉख डाल कर देखो ॥

ताक मे रात रात भर न रहे।
सूइयां डालने से मुंह मोड़ें ॥
और को ऑख फोड़ देने को ।
आँख अपनी कभी न हम फोड़े ॥

तब टले तो हम कही से क्या टले ।
डाँट बतला कर अगर टाला गया ॥
तो लगेगी हाथ मलने आबरू ।
हाथ गरदन पर अगर डाला गया ॥